तिघरा जलाशय साँक नदी पर स्थित एक मीठे पानी का जलाशय है। यह ग्वालियर (मध्य प्रदेश, भारत) से 23 किमी दूर स्थित है, और शहर को मीठे पानी की आपूर्ति करने में बड़ी भूमिका निभाता है।यह बांध अपने शिखर पर 24 मीटर ऊँचा और 1341 मीटर लंबा है। जलाशय की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक मीटर है और स्पिलवे संरचना 1274 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड तक गुजर सकती है। इस स्थल पर 1915 में एक बांध निर्मित किया गया था। 19 अगस्त 1917 की दोपहर को इसके बलुआ पत्थर की
नींव में रिसाई होने के कारण यह बाँध टूट गया, जिससे आने वाली बाढ़ में लगभग 10,000 लोग मारे गए।1999 में एक और संरचना बनायी गयी, जो कि विफल हो गयी।तिघरा बाँध का निर्माण 1916 में सांक नदी पर किया गया था। इस बांध के आसपास के क्षेत्रों में ग्यारह गाँव आते हैं। ग्रामीण अपने सिंचाई, पीने और घरेलू उद्देश्य के पानी के लिए इस बांध पर निर्भर हैं। इसके अलावा, यह बांध ग्वालियर शहर को पीने का पानी भी प्रदान करता है। तिघरा बाँध के नकारात्मक और गदहा प्रभावों में से एक यह है कि इसका निर्माण घाटीगाँव में किया गया है। बांध के निर्माण के बाद यह क्षेत्र कई पक्षियों के लिए एक उपयुक्त निवास स्थान बन गया और इस क्षेत्र को बाद में पक्षी अभयारण्य भी घोषित किया गया। लेकिन इसके कारण बांध के आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों का पुनर्वास भी शुरू हो गया। धारा के बहाव पर नियंत्रण, बाढ़ की रोकथाम, और सिंचाई के लिए पानी प्रदान करने जैसे सकारात्मक गुणों के बावजूद यह पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिनमें से जल जमाव, भूमि की हानि, लोगों का पुनर्वास और गाद का निर्माण प्रमुख हैं।
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