लोकतंत्र का क्या केवल एक ही पहलू है राजनैतिक लोकतंत्र क्या आर्थिक लोकतंत्र नाम कि कोई चीज होती ही नही है इस बात को बोलकर केवल लोकतंत्र का मजाक ही उड़ाया जा सकता पण्डित दीन दयाल उपध्याय जी के शब्दों में जिस प्रकार प्रत्येक को वोट राजनैतिक लोकतंत्र का अर्थ है उसी प्रकार प्रत्येक को काम आर्थिक लोकतंत्र का मापदण्ड है फिर भी आर्थिक असमानता और भुकमरी जैसी समस्या हमारे देश में चरम पर है लोहिया जी का वाक्य -जब सड़के सुनसान हो जाती है तो संसद आवारा हो जाती है वाक्य इस समय एकदम सही है। (कोई देश परफैक्ट नही होता हमे उसे परफैक्ट बनाना पड़ता है)
Nice bhai
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